कोविड- 2019: जैवविविधता संरक्षण- " हमारे समाधान प्रकृति में है "
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(कोविड-19) (जैवविविधता संरक्षण)
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( हमारे समाधान प्रकृति में है)
" जैवविविधता एक प्राकृतिक संसाधन है जिससे हमारे जीवन की संपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति होती है"
" जैवविविधता" शब्द मूलत: दो शब्दों से मिलकर बना है- जैविक+ विविधता |
जैवविविधता से तात्पर्य विस्तृत रूप से उन विभिन्न प्रकार के जीव- जंतु और वनस्पति से है जो संसार में या किसी विशेष क्षेत्र में एक साथ रहते हैं | जैवविविधता धरती पर मानव के अस्तित्व और स्थायित्व को मजबूती प्रदान करती है समृद्ध जैवविविधता अच्छी सेहत, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास, आजीविका सुरक्षा और जलवायु की परिस्थितियों को सामान्य बनाए रखने का आधार होती|
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कोविड-19
कोविड-19( नोवेल करोना वायरस-2019) करोना वायरस विषाणुओं का एक बड़ा समूह है, जो इंसानों में सामान्य जुकाम से लेकर श्वसन तंत्र की गंभीर समस्या तक पैदा कर सकता है| इस वायरस का नाम इसके शेप ( क्राउन) के आधार पर रखा गया है| 2002 के सार्स एवं 2012 के मर्म वायरस से भी अलग है| नोवेल कोरोना वायरस भी जूनोटिक( जानवरों से इंसानों में) बीमारी है|
1930 में पहली बार करोना वायरस का पता चला था उस समय यह वायरस घरेलू मुर्गियों में मिला था| सिर्फ सात कोरोनावायरस ऐसे हैं जो इंसानों में बीमारी फैलाते हैं| चार करोना की वजह से इंसानों में आम सर्दी जुकाम की समस्या होती है|
किसी वायरस को ग्रोथ के लिए बड़ी संख्या में एक साथ रहने, लंबी आयु, उड़ने की अच्छी क्षमता वाले जीव की जरूरत होती है जिससे वायरस को दूर-दूर तक फैलने में सहायता मिल सके इस हिसाब से चमगादड़ अधिक से अधिक वायरसों लिए एक अच्छा होस्ट बनता है|
आज यह बीमारी एक वैश्विक महामारी बनकर उभरी है जिसका अभी तक कोई भी इलाज संभव नही हो सका अभी तक इस बीमारी से बचने का मात्र एक ही रास्ता है सामाजिक दूरी बनाए रखना| यह वायरस मनुष्य और प्रकृति के बीच पैदा हुए प्राकृतिक असंतुलन का ही दुष्परिणाम है प्रकृति के नियमों को समझने के लिए बहुत सामान्य नियम है- " अति सर्वत्र वर्जयेत " हर चीज की अति बुरी है|
अत्यधिक मांस का उत्पादन रोगाणु रोधी प्रतिरोध और बढ़ते वैश्विक तापमान जैसे कारक वन्य जीव विषाणु को मनुष्य में फैलने और महामारी जैसी भयावह रूप धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं| आर्थिक विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने से पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ा है आज हम वैश्विक महामारी से गुजर रहे हैं उसके लिए हम मानव जाति जिम्मेदार हैं|
प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का दुष्परिणाम हमे झेलना ही पड़ेगा प्रकृति हमारी तरह अपनी आपत्तियों को क्रोध और चिल्लाहट के साथ दर्ज नही कराती पहाड़, नदियां, तूफान और सेहत के अनसुलझे कठिन होते सवाल कहीं ना कहीं हमें यह संकेत कर रहे हैं कि प्रकृति से हमारे संवाद में दूरियां बढ़ गई हैं|
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"प्रकृति की रक्षा ही है जीव जंतुओं की रक्षा"
प्रकृति अपना बदला हमसे किसी ना किसी रूप में ले ही लेती है बाढ़, भूकंप तो कभी महामारी बनकर एक कहावत है ना- " जैसी करनी वैसी भरनी" आज देखिए आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह बंद है, सड़के सूनी पड़ी हैं मनुष्य बस चार दीवारी के अंदर कैद रह गया है और ठीक है इसी के विपरीत प्रकृति का सौंदर्यीकरण बढ़ा है, नदियों का पानी स्वच्छ हो गया है, वाहनों, कारखानों, खनन की वजह से जो वायु प्रदूषण हो रहा था उसमे कमी आई खुले में सांस लेना दुर्भर हो रहा था आज हमें स्वच्छ वायु मिल रही है खुल के सांस ले पा रहे हैं|
पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवो और वनस्पतियों की विविधता ही जैवविविधता कहलाती है|
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कोरल रीफ बैक्टीरिया
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(जैवविविधता)
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वर्षावन जीव-जंतु पेड़- पौधे
जैवविविधता से धरती पर मानव के अस्तित्व और स्थायित्व को मजबूती मिलती है जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से प्रजातियों के आवास नष्ट हो रहे हैं| पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से जैवविविधता ही नहीं बल्कि मानवीय जीवन भी बद से बदतर होती जा रही है|
यह जो वैश्विक महामारी आई है इसे प्रकृति की चेतावनी समझनी चाहिए की मानव अब भी वक्त है संभल जाए जो विकास के नाम पर पर्यावरण से छेड़छाड़ कर रहा है उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी|
ग्लोबल वार्मिंग आज के विश्व की सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है प्रकृति मानव को संभलने के लिए समय-समय पर संदेश देती रहती है वैश्विक तापमान से ना केवल मनुष्य बल्कि धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी परेशान हैं|
जैवविविधता संरक्षण:-
पृथ्वी पर मौजूद पेड़-पौधे, जीव- जंतु मिलकर जैव विविधता बनाते हैं हम अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर है जैवविविधता के संरक्षण से ही मानव जीवन का अस्तित्व बना रहेगा यदि हमें अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो जैवविविधता का संरक्षण आवश्यक है|
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जैवविविधता बनाए रखो,
पेड़-पौधे जंतुओं का अस्तित्व बचाए रखो,
पर्यावरण को प्रदूषण से बचाएं चलो,
जीवन में खुशहाल जीवन जीते चलो,
जल को प्रदूषित होने से बचाएं चलो,
वायु प्रदूषण को रोकने चलो,
पेड़- पौधे हम लगाएं चलो,
इस संदेश को आगे बढ़ाएं चलो,
जैवविविधता बनाए रखो|
स्वस्थाने संरक्षण:- इसके अंतर्गत जीवो को उनके प्राकृतिक आवास के अंतर्गत ही संरक्षित किया जाता है|जैसे- राष्ट्रीय पार्क, अभ्यारण्य|
कृत्रिम आवासीय संरक्षण:- इसके अंतर्गत विलुप्त प्राय प्राणी या वनस्पति को प्राकृतिक आवास के समान ही कृत्रिम आवास बनाकर संरक्षित किया जाता है|जैसे- वनस्पति उद्यान, चिड़ियाघर, जीन, पराग, बीज, अंकुर, व जीन बैंक|
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प्रजातियों और पारिस्थितिकी प्रणालियों से पर्यावरण सेवाओं के साथ-साथ उनके संरक्षण की भी जिम्मेदारी ना केवल वैश्विक स्तर पर होनी चाहिए बल्कि क्षेत्रीय और स्थानीय स्तरों पर आवश्यक है |
जैवविविधता के संरक्षण के लिए भारत सरकार के प्रयास-
• नेशनल पार्क, वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और बायोस्फीयर रिजर्व की स्थापना की गई
• बॉटेनिकल गार्डन, जीन पूल सेंटर, जीन बैंक और क्रायोप्रिजर्वेशन के जरिए संकटग्रस्त या विलुप्त हो रहे जीवो के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं|
• वर्ष 2002 में जैवविविधता एक्ट लाया गया
• राष्ट्रीय जैवविविधता कार्रवाई योजना(NBAP) प्रोजेक्ट एलीफेंट, गंगा डॉल्फिन, समुद्री कछुआ प्रोजेक्ट, हिम तेंदुआ परियोजना, लाल पांडा परियोजना, हंगुल परियोजना जैसे कई कार्यक्रम संचालित किए हैं|
हमने अब यह ठाना है,
जीवो वो को बचाना है|
करे प्रण अब जीवो को रक्षित,
होगी तभी धरती सुरक्षित||
हमारे समाधान प्रकृति में ही समाहित है बशर्तें हमारी गतिविधियां प्रकृति के विपरीत ना हो|विकास के दोराहे पर, मनुष्य का वजूद प्रकृति से है ना की प्रकृति का अस्तित्व मानव से|
हमारे समाधान प्रकृति में हैं
जल:-
प्रकृति हमारी जरूरतों को पूरा करती है लेकिन मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती|
जल संकट का स्थाई समाधान केवल प्रकृति ही कर सकती है प्रकृति ने हमें जीवित रखने के लिए पर्याप्त पानी दिया है लेकिन मनुष्य को प्रकृति के द्वारा दिए गए धन का संचय करना नहीं आया पानी कितना कीमती है समझा ही नहीं अंधाधुंध खर्च किया सिर्फ अपने सीमित हितों की पूर्ति के लिए और आज देखे तो पानी की सबसे बड़ी समस्या उभर कर सामने आ रही है एक समय था जब नदियां, तालाबों, कुंओं में पानी लबालब भरा रहता था सदानीरा नदियां बहती रहती थी और आज कई जगह एक बाल्टी पानी को मोहताज है बारिश का पानी नदी- तालाबों में बह जाता है और हम जमीन में पानी ढूंढते रहते हैं प्रकृति हमें पानी जैसे अनमोल खजाना सौंपा था लेकिन हम दोहन की जगह शोषण करने लगे|
प्रकृति हमें हमेशा से ही सब कुछ देती रही है जल की पूर्ति होती रहे इसके लिए प्रकृति में ही इसका समाधान ढूंढना होगा| बारिश के पानी के साथ-साथ प्राकृतिक जल संरचनाओं को सहेजने पर भी जोर देना होगा जल संकट का स्थाई समाधान ही बेहतर विकल्प है|
" आज जरूरत नदियों को साफ करने की नहीं बल्कि उन्हें गंदा ना करने की है"
नदियों को धन नहीं धुन चाहिए|
शासन नहीं अनुशासन चाहिए|
नदी को ढांचा नहीं ढांचा से मुक्ति चाहिए|
वायु:-
सांस लेने के लिए वायु की पूर्ति प्रकृति ही करती है हमारे द्वारा उत्सर्जित CO2 को पेड़-पौधे अवशोषित करके हमें शुद्ध वायु O2 देते हैं जिससे हम खुले में सांस ले सकें लेकिन मनुष्य इससे भी बाज नहीं आता इसने तो अपने सीमित लाभ के लिए लालच में आकर पूरे के पूरे जंगल ही नष्ट करते चले जा रहा है जिन जंगलों पर मनुष्य खुद निर्भर है जंगली जानवरों का प्राकृतिक आवास है नष्ट होते जा रहे हैं जंगली जानवरों का जीवन खतरे में है कई पक्षियों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो गया हमें अपने औषधियों के लिए भी जंगलों के पेड़-पौधे जड़ी-बूटियों पर निर्भर हैं|
धूप:-
प्रकृति से प्राप्त धूप में ही बीमारियों का समाधान भरा पड़ा है लेकिन हम मनुष्य महंगी से महंगी दवा खाने के लिए तैयार है लेकिन कुछ मिनट की धूप नहीं ले सकते इसका नतीजा हम देख ही रहे हैं हड्डियों में दर्द, फ्रैक्चर, जल्दी थकान, घाव भरने में देरी, मोटापा, तनाव,अल्माइजर जैसी बीमारियां हमारे शरीर का अंग बन चुके हैं सिर्फ कुछ मिनट की धूप लेने से हम विटमिन-डी प्राप्त कर सकते हैं और कई प्रकार की बीमारियों से दूर रह सकते हैं और स्वस्थ रह सकते हैं|
Covid19 |
आज करोना (कोविड-19) जैसी महामारी से बचने में भी विटमिन-डी कहीं ना कहीं बड़ी भूमिका निभा रहा है|
आगे की राह :-
प्रकृति की रक्षा के लिए स्वच्छ प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहिए| प्रदूषण को कम करने CO2 उत्सर्जन घटाने, प्लास्टिक कम इस्तेमाल पर ध्यान देना चाहिए| जैवविविधता पर वैश्विक महामारी के लिए सभी देशों को एक मंच पर आने की जरूरत है| हम लोगो का रोजमर्रा के जीवन में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी भरा व्यवहार होना चाहिए जिससे भविष्य में आज कोरोना जैसी परिस्थितियां ना बने हमारी गतिविधियां प्रकृति के अनुरूप होनी चाहिए प्रकृति से तालमेल बनाकर रहना होगा क्योंकि एकमात्र प्रकृति ही है जिसके पास सभी समस्याओं का स्थाई समाधान है|
Written by: SHUBHAM TIWARI SORK
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