प्रेरक कविता
Nadani Poem प्रिय आगंतुक इस पेज में प्रेरक कविताओं का एक छोटा सा संग्रह प्रस्तुत कर रहा हूं| जो आपको बेहद उत्साहित और प्रेरक लगेंगी|
शीर्षक :- नादानी
"नादानी" वर्तमान युवा पीढ़ी के लिए इस कविता के माध्यम से उनके द्वारा की जाने वाली भूल को ना करने की बात को प्रकाशित किया गया है और यह उम्मीद के साथ यह कविता लिखी गयी है की पाठक गण पढ़ के इससे सीख हासिल करेंगे|
करता रहा जो यूं नादानीकच्चे घड़े में जैसे पानीबात जो तूने न मानीरोएगा फिर यही कहानी||बस छाल तेरी है सुहानीऔर रंग यह तेरे रूहानीबह गए हैं, बह रहे हैंकतरा-कतरा, पानी-पानी ||आंक मत तू मुंह जुबानीरुक,ठहर,बदल, चल फिर तूपथ,पथिक,हवा और पानीllचलता रहा है,चलता रहेगाशाने-शौकत खानदानीफिर तो,सोच तेरी यह गलत हैबीत गए हैं,बीत रहा हैसमय,बचपना आई सयानी ||बचा ना फिर कुछ, ना ही बचेगाभ्रम से यदि तू अब ना उठेगाछोड़ दे झूठे रंग तू अब यहउठ खड़ा हो लड़े जा जंग यह ||क्योंकि,करता रहा जो यूं नादानीकच्चे घड़े में जैसे पानीबह गए हैं बह रहे हैंकतरा-कतरा,पानी-पानी||
Written by- shubham tiwari SORK😊
शीर्षक- मंज़िल की ओरजिंदगी की शुरुआत से,बीतते हुए हर दिन रात से,रोज नई मिलती शौगात से,शतंरज सी बनी बिसाद से,लोगों के बदलते स्वभाव से,नित नए बदलाव से,कही गिरता तो कही ,संभलता जा रहा हूँ,थोड़ा सा ही सही मगर,अपनी मंजिल की ओर चलता जा रहा हूँ।१।ढलती हुई शाम से,कभी तेज तो कभी आराम से,बदलते हुये मौसम से,कभी ख़ुशी तो कभी गम से,हवाओं की गर्माहट से,अपने मंजिल की आहट से,जिंदगी के प्रति घबराहट को,धीरे धीरे दूर करता जा रहा हूँ,अपनी मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा हूँ,।२।जिंदगी की कठिनाई से,जीवन की सच्चाई से,कभी खुद की परछाई से,कभी नीचे तो कभी ऊँचाई से,अपने अंदर की अच्छाई से,बहुत दूर हो बुराई से,अपने पथ को सुगम ,करता जा रहा हूँ,अपनी मंजिल के नजदीक बढ़ता जा रहा हूँ,।३।कभी प्रेम में कभी क्रोध में,हर गलती के प्रतिरोध में,अपने अपनों से अनुरोध में,दुश्मनी के विरोध में,कभी रोष में कभी होश में,पर नित प्रति नये जोश में,अपने सारे कर्तव्य को,बिना किसी चाह के करता जा रहा हूँ,अपने मंजिल को और पास करता जा रहा हूँ,।४।अपने जीवन को सदाचार से,नित नए सद्विचार से,बड़ो के प्रति व्यवहार से,सबके सप्रेम सत्कार से,बढ़ने की सोच को निखार के,अपनी गलतियों को सुधार के,अपने जन्म को सफलकरता जा रहा हूँ,अपने कर्तव्य के पथ पर,बिना रुके बढ़ता जा रहा हूँअपनी मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा हूँ,।५।लोगों पर अपने प्रभाव से,व्यवहार में बदलाव से,अपने क्रोध से बचाव के,हर स्थिति में स्थिर भाव से,हर अपने के सुझाव सेअपने स्थिति में स्थिरता का,संधान करता जा रहा हूँ,एक अलग सी चाह ले ,मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा हूँ,।६।Written by- suryadeep"shivam"
प्रेरक कविता - मंजिल की दौड़
एक लगन अपनी मंजिल की,एक चाहत जो दिन-रात टहलती है,
एक आस अपने सपनों से,एक लगाओ अपने अपनों से,एक विश्वास जो हर दिन बढ़ता है ,एक चमक जिससे चेहरा निखरता है,एक खुसबू जो मन महकाती है,एक आवाज जो शोर मचाती है ,एक साहस जो मुझे समझता है,कुछ बातों में कुछ कह जाता है ,एक आग जो अंदर धधकती है,एक लहर जो दिन-ब-दिन बढ़ती है ,एक लक्ष्य जो मुझमे पलता है,एक कदम जो गिरता संभलता है,एक दौड़ जिसका मैं हिस्सा हूँ,एक जिंदगी जिसका मैं किस्सा हूँ,एक रोष कुरीति के प्रभावों पर,एक मजबूत पकड़ अपने भावों पर,एक गुमसुम शांतिपूर्ण सलिखा है,एक पल जिसमें कुछ न कुछ सीखा है,एक मुखर प्रवृति की काया है,एक सूंदर भाव रोम में समाया है ,एक ध्यान जो कर्म आकर्षित है,एक मेहनत को जो लक्ष्य प्रति पूर्ण समर्पित है,एक अमित छाप सच्चाई की,एक सुखद आनंद अच्छाई की,कुछ अच्छे और मनोरंजन क्षण,कुछ कर नाम बनाने का प्रण,एक कठिन समय मे ठहराव,ये है जिन्दगी का मध्य पढ़ाव,एक व्यवहार हर पल स्नेहपूर्ण,एक मधुर वाणी गीता की गूंज,एक प्यास अपने मंजिल की,एक लगन अपने मंजिल की ||प्रेरक कविता - 'बदलाव जरूरी है'
जब बात आये सम्मान पर,
तब बदलाव जरूरी है।जब पीछे से हो वार यहाँ,
तब सामने से खंजर का घाव जरूरी है।जब उठाया जाये फायदा अच्छाई का,
तब उनके होशियारी का प्रतिकार जरूरी है।तुम्हारे होने का न हो मोल जहाँ,
तब उनके ग़ुरूर को धूल चटाना जरूरी है।
जब लगाव को समझा जाये मजबूरी यहाँ,
तब उनको उनकी औकात दिखाना जरूरी है।जब समय करें लगातार माँग यहाँ,
तो कोमलता से कठोरता का अपनाव जरूरी है।मतलबी दुनिया से सिर्फ मतलब का भाव जरूरी है,
जीतते रहने के लिये अपने नियम कायदों में बदलाव जरूरी है।Written by-suryadeep"shivam"
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ردحذفNice poem
ردحذفNice blog
ردحذفNice
ردحذفBahut acche
ردحذفShaandaar👌👌👌👌
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