जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा- jagannath puri rath yatra 2020

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा

 उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ जी का मंदिर समस्त दुनिया में प्रसिद्ध है| यह मंदिर हिंदुओं के चारों धाम में से एक है | जगन्नाथ पुरी में भगवान विष्णु के अवतार, भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है जो बहुत विशाल और कई हजार सालों पुराना है मंदिर में लाखों भक्त हर साल दर्शन के लिए आते हैं| इस जगह का एक मुख्य आकर्षण जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा भी है| यह रथयात्रा किसी त्योहार से कम नहीं होती कहते हैं मरने से पहले हर हिंदू को चारों धाम की यात्रा करनी चाहिए इससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है|
Jagannath Puri rath yatra
Jagannath Puri rath yatra

भगवान जगन्नाथ मंदिर निर्माण कार्यकाल

           पुरी में जगन्नाथ जी का मुख्य मंदिर 12 वीं सदी में राजा अनंतवर्मन के शासन काल के समय बनाया गया| उसके बाद जगन्नाथ जी के 120 मंदिर बनाए गए है| लगभग 10.7 एकड़ वर्ग भूमि पर निर्मित जगन्नाथ के मंदिर का शिखर 192 फुट ऊंचा और चक्र तथा ध्वज से सुशोभित है, अष्टधातु से निर्मित चक्र को निलचक्र कहा जाता है| लगभग 3.5 मीटर की ऊंचाई पर स्थापित इस चक्र के निकट ध्वज वाहिनी पर प्रतिदिन एक नए प्रकार का ध्वज फहराया जाता है|

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा कब मनाया जाता है ?

जगन्नाथ जी की रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन निकाली जाती हैं| इस साल यह 23 जून 2020 दिन मंगलवार को निकाली जाएगी| रथ यात्रा का महोत्सव 10 दिन का होता है जो शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन समाप्त होती है इस दौरान पुरी में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं और इस महाआयोजन का हिस्सा बनते हैं इस दिन भगवान श्री कृष्ण, उनके भाई बलराम, उनकी बहन सुभद्रा को रथों में बैठाकर गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है तीनों रथों को भव्य रूप से सजाया जाता है|

Jagannath rath yatra


        संपूर्ण उड़ीसा को प्रभु जगन्नाथ जी की भूमि कहा जाता है इस प्रदेश के लोग भगवान जगन्नाथ को एक सदस्य मानते हैं हर सबका मन से आशीर्वाद लेने के बाद किया जाता है उन्हें पुरुषोत्तम कहा जाता है और पूरी को पुरुषोत्तम क्षेत्र कहा जाता है| पूरी को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे- नीलगिरी, नीलाद्री, नीलांचन, पुरुषोत्तम, शंखक्षेत्र, जगन्नाथ धाम और जगन्नाथ पुरी|

पौराणिक कथाएं

 जगन्नाथ यात्रा को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं भी है| एक पौराणिक कथा के अनुसार एक  दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा  नगर देखने की इच्छा व्यक्त की भगवान जगन्नाथ ने इनकी इच्छा पूरी करने के लिए रथ में बैठा कर उन्हें भ्रमण करवाया जिसके बाद से हर साल रथयात्रा निकाली जाती है इस कथा का जिक्र स्कंद पुराण,  नारद पुराण, पद्म पुराण ब्रह्म पुराण आदि में भी है|
 इसके अलावा एक और कथा भी हमारे पुराणों में लिखी गई है|
Jagannath rath yatra
Jagannath rath yatra nirman

       
Jagannath rath yatra
Jagannath rath yatra nirman

Jagannath rath yatra
Jagannath rath yatra
कलयुग के प्रारंभिक काल में मालवा  के राजा इंद्रद्युम्न का शासन था| वे जगन्नाथ के भक्त थे एक  दिन राजा भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने नीलांचन  पर्वत पर गए तो उन्हें देव के प्रतिमा के दर्शन नहीं हुए तो निराश होकर राजा वापस आने लगे तभी एक आकाशवाणी हुई कि शीघ्र ही भगवान जगन्नाथ मूर्ति के रूप में इस धरती पर आएंगे| आकाशवाणी के कुछ दिनों बाद जब राजा पुरी के समुद्र तट पर टहल रहे थे तभी उन्हें समुद्र में लकड़ियों के टुकड़े करते हुए दिखाई दिए तब उन्हें आकाशवाणी की याद आई उन्होंने सोचा कि इसी लकड़ी से भगवान की मूर्ति बनवा आएंगे| मैं लकड़ी को अपने साथ महल में ले आए| 

भगवान की आज्ञा से देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा वहां बढ़ई के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने उन्हें लकड़ियों को भगवान की मूर्ति बनाने के लिए राजा से कहा राजा ने तुरंत इसकी आज्ञा भी दे दी लेकिन मूर्ति बनाने से पहले बढ़ाई रूपी विश्वकर्मा ने एक शर्त रखी शर्त के मुताबिक मूर्ति का निर्माण में एकांत में ही करेंगे और यदि निर्माण कार्य के दौरान वहां कोई आता है तो वह काम को अधूरा छोड़ कर चले जाएंगे| राजा ने शर्त मान ली जिसके बाद विश्वकर्मा ने गुंडिचा नामक जगह पर मूर्ति बनाने का काम शुरू कर दिया|

कुछ दिनों बाद उस जगह पर मूर्ति बनाने का काम शुरू कर दिया| कुछ दिनों बाद एक दिन राजा भूलवश इस स्थान पर विश्वकर्मा मूर्ति बना रहे थे वहां पहुंच गए तब उन्हें देख विश्वकर्मा वहां से अंतर्ध्यान हो गए और भगवान जगन्नाथ,  बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी रह गई | तभी आकाशवाणी हुई कि भगवान किसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं राजा ने विशाल मंदिर बनवा कर तीनों मूर्तियों को वहां स्थापित किया साथ ही आकाशवाणी भी हुई थी कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपने जन्म भूमि जरूर जाएंगे|

       स्कंद पुराण के उत्तरखंड के अनुसार राजा ने आषाढ़ शुक्ल के द्वितीया के दिन प्रभु के उनके जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की तभी से यह परंपरा रथ यात्रा के रूप में चली आ रही हैं|

जगन्नाथ रथयात्रा की पौराणिक मान्यता

 मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति इस रथ में शामिल होकर इन रथों को खींचता है उन्हें सौ  से अधिक का पुण्य प्राप्त होता है| रथो  को खींचने के लिए किसी भी तरह की मशीन का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि दुनिया भर के  श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने के लिए आते हैं| इस यात्रा में तीन रथ होते हैं जो लकड़ी के बने होते हैं इस रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर भगवान श्री बलराम, उसके पीछे पदम ध्वज पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अंत में गरुड़ध्वज पर जगन्नाथजी सबसे पीछे चलते हैं| भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं एवं भाई बलराम के रथ में 14 और बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं|

जगन्नाथ रथयात्रा की महिमा

 स्कन्द पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है। जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाते हैं वे सीधे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं। जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करते हैं वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं। रथयात्रा एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ चलकर जनता के बीच आते हैं और उनके सुख दुख में सहभागी होते हैं।  जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है। ऐसी मान्यता श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं की है।
Jagannath rath yatra
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