महाभारत का युद्ध कब, कहां, क्यों और कैसे हुआ-गीता ज्ञान

महाभारत कब,कहां,क्यों और कैसे हुआ-

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Mahabharata

 महाभारत ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ माना जाता है जो कि एक महाकाव्य है महाभारत में लगभग 100000 श्लोक हैं जो ऑडिसी और इडियट से 7 गुना ज्यादा माना जाता है महाभारत का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है भगवत गीता जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान से अवगत कराया है महाभारत ग्रंथ को महर्षि वेदव्यास जी ने लिखा था
आइए जानते हैं कि महाभारत कब हुआ कहां और क्यों हुआ:-

महाभारत का युद्ध कब हुआ

एक शोध के अनुसार महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3667 ईसा पूर्व हुआ था|तब भगवान श्रीकृष्ण 56 वर्ष के थे| हालांकि कुछ विद्वान मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण 83 वर्ष के थे|

महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद उन्होंने देह त्याग दी थी|इसका मतलब उन्होंने 119 वर्ष की आयु में देह त्याग किया था|कुछ पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण की आयु 125 वर्ष बताई गई है| जबकि ज्योतिषियों के अनुसार उनकी आयु 110 वर्ष की थी|
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Mahabharata

आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ था|ज्योतिषियों के अनुसार कलयुग के आरंभ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरंभ हुआ था|जो 18 दिन तक चला था कलयुग का आरंभ श्री कृष्ण के निधन के 35 वर्ष पश्चात हुआ|

 महाभारत का युद्ध कहां हुआ 

महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था| कुरुक्षेत्र हरियाणा में स्थित है| लड़ाई के लिए कुरुक्षेत्र का चयन भगवान श्री कृष्ण ने ही किया था|

इसके पीछे का मानना यह है कि जब कुरू उस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब देवेंद्र ने उनसे आकर पूछा था कि यह क्यों ऐसा कर रहे आप?  कुरु ने जवाब दिया था कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मारा जाएगा वह स्वर्ग लोक में जाएगा ऐसी मेरी इच्छा है इंद्र उनका यह वाक्य सुन कर मज़ाक उड़ाए और अपने  लोक चले गए |लेकिन कृष्ण जी को यह पता था और अंततः युद्ध वही हुआ |

महाभारत युद्ध क्यों हुआ:-


महाभारत युद्ध जो धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों तथा उनके चचेरे भाई पांडवों के मध्य होने वाला था धृतराष्ट्र तथा पांडू भाई-भाई थे जिनका जन्म कुरु वंश में हुआ था और जो राजा भरत के वंशज थे| जिनके नाम पर ही महाभारत नाम पड़ा महाभारत नाम पड़ा क्योंकि बड़ा भाई धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था|
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अतएव राज्य सिंहासन उसे ना मिलकर उसके छोटे भाई पांडू को मिला| पांडु की मृत्यु बहुत ही कम आयु में हो गई |अतः उसके 5 पुत्र युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव धृतराष्ट्र की देखरेख में रख दिए गए क्योंकि उसे कुछ काल के लिए राजा बना दिया गया था|

 इस तरह धृतराष्ट्र तथा पांडु के पुत्र एक ही राज महल में बढ़े हुए दोनों ही को गुरु द्रोण द्वारा सैन्य कला का प्रशिक्षण दिया गया और पूज्य भीष्म पितामह उन्हें सलाह देते रहते थे|

 कौरवो मैं कुटिलता जन्म से ही भरी हुई थी धृतराष्ट्र का सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन पांडवों से घृणा और द्वेष करता था और अंधा तथा दुर्बल ह्रदय धृतराष्ट्र पांडु पुत्रों के बजाय अपने पुत्रों को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहता था|
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 इस तरह धृतराष्ट्र के परामर्श से दुर्योधन ने पांडु के युवा पुत्रों को जान से मार डालने का षड्यंत्र रचा|पांचो पांडव अपने चाचा विदुर तथा अपने ममेरे भाई कृष्ण के संरक्षण में रहने के कारण अपने प्राणों की रक्षा करते रहे|

कृष्ण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि ये तो साक्षात परम ईश्वर हैं जिन्होंने इस धरा धाम में अवतार लिया था और अब एक राजकुमार की भूमिका अदा कर रहे थे|

पांडु की पत्नी कुंती या प्रथा के भतीजे थे|इस तरह संबंधी के रूप में तथा धर्म के पालक होने के कारण वे पांडू पुत्रों का पक्ष लेते रहे और उनकी रक्षा करते रहे|

 किंतु अंततः चतुर दुर्योधन ने पांडवों को जुआ खेलने के लिए ललकारा|उस निर्णायक स्पर्धा में दुर्योधन तथा उनके भाइयों ने पांडवों की सती पत्नी द्रौपदी पर अधिकार प्राप्त कर लिया|और फिर उसे राजाओं तथा राजकुमारों की सभा के मध्य निर्वस्त्र करने का प्रयास किया| कृष्ण के दैवीय शक्ति से उसकी रक्षा हो सकी|

 किंतु जुए में हार जाने के कारण पांडवों को अपने राज्य से हाथ धोना पड़ा और 13 वर्ष तक वनवास के लिए जाना पड़ा| वनवास से लौटकर पांडवों ने दुर्योधन से अपना राज्य मांगा किंतु उसने देने से इंकार कर दिया| पांचों पांडवों ने अंत में अपना पूरा राज्य ना मांग कर केवल 5 गांव की मांग रखी किंतु दुर्योधन सुई की नोक भर भी भूमि देने के लिए राजी नहीं हुआ|
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अभी तक तो पांडवों सहनशील बनी रहे लेकिन अब उनके लिए युद्ध करना अवश्यंभावी हो गया|विश्व भर के राजकुमारों में से कुछ धृतराष्ट्र के पुत्रों के पक्ष में थे तो कुछ पांडवों के पक्ष में|

महाभारत युद्ध कैसे हुआ

उस समय कृष्ण पांडव पुत्रों के संदेश वाहक बन कर शांति की याचना के लिए धृतराष्ट्र के दरबार में गए जब|उनकी याचना अस्वीकृत हो गई तो युद्ध निश्चित था अत्यंत सच्चरित्र पांचों पांडवों ने कृष्ण को भगवान के रूप में पहचान लिया था|

किंतु धृतराष्ट्र के दुष्ट पुत्र उन्हें नहीं समझ पाए थे| फिर भी कृष्ण ने विपक्षियों की इच्छा अनुसार ही युद्ध में सम्मिलित होने का प्रस्ताव रखा ईश्वर के रूप में व्यक्त नहीं कर सकते थे| किंतु जो भी उनकी सेना का उपयोग करना चाहे कर सकता था|

 राजनीति में कुशल दुर्योधन ने कृष्ण की सेना झपट ली |जबकि पांडवों ने कृष्ण को लिया| इस प्रकार कृष्ण अर्जुन के सारथी बने और उन्होंने उस सुप्रसिद्ध धनुर्धर का रथ हाकने का कार्य स्वीकार किया|
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 इस तरह हम उस बिंदु तक पहुंच जाते हैं जहां से भगवत गीता का शुभारंभ होता है दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए तैयार खड़ी है और धृतराष्ट्र अपने सचिव संजय से पूछ रहा है कि उन सेनाओं ने क्या किया| इस तरह सारी पृष्ठभूमि तैयार है|

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