दोस्तों इस कविता के माध्यम से कवि, जीवन के मुश्किल भरे पलों से निकलने के तरीकों पर जोर दिया है। पद्दात्मक़ शैली से संग्रहीत यह रचना जीवन के संघर्ष पलों से जीतनें पर जोर देती है। तो दोस्तो आईए इस सुंदर कविता का रसपान करते है जो आपके लिए एक प्रेरणास्रोत साबित होगी।
कुछ तो होगा जरूर ,
जिसका इशारा तुम्हारी ओर है।
ये कोई हकीकत नही है बस बेसुरा शोर है,
अगर मजबूत है इरादा तो ढ़ीली क्यों मेहनत की डोर है,
गलतफैमिया है सोच की बातें भी बिना जोर है।
वर्षा ऋतु पर सर्वश्रेष्ठ कविता पढ़ने के लिए दबाएं
ढूंढ़ लो खुद को अभी नही हुई देर है,
क्यों देते हो दुहाई तक़दीर की
जब कि तुम खुद हो मालिक।
हथेली के हर एक लकीर की,
छोड़ो ये राग सुर कोई अच्छा तान लो,
होगा क्यो नही कुछ अगर तुम मन से ठान लो।
आये है सब एक मक़सद से,
पूरा कर के ही जाना है,
कर लेंगे वो सब अपना,
जो मन मे बरसों से ठाना है।
दिख रहा की है कुछ पास नही,
बस ये मुश्किलों का ताना-बाना है,
सपने सच करने की दौड़ में,
हमको तेजी से दौड़ लगाना है।
मेहमान सी है ये जिंदगी,
बस कुछ वर्षों का हि ठिकाना है,
कुछ करने आये है तो ,
कुछ कर के ही यहाँ से जाना है।
यू ही नही मिलता जन्म यहाँ,
पहले से बुना गया अफ़साना है,
बस मेहनत के बलबूते,
अपनी मंजिल को पाना है।
संवाद अपने कलम से click here
सच्चाई का कोई मोल नही,
बुराई से भरा जमाना है,
हमको अपने रास्ते पर,
बस यूं ही चलते जाना है।
रुकना नही है मंजिल तक,
हर अपनों का साथ निभाना है,
दिखती हर गुंजाइश में,
बस सफलता को ही पाना है।😊
By:- Suryadeep pandey
शीर्षक- *आगाह*
मेरे दिल मे किसी अपने के प्रति दिखावा नही है,
जो कुछ कहना है सामने है कोई छलावा नही है।
मिटे छाप अपने संस्कार और संस्कृति की,
ऐसा कोई ढंग या पहनावा नही है।
साफ है तासीर हर एक के लिए,
किसी विशेष का मेरे स्नेह में दावा नही है।
देश की दशा पर कविता- मेरे कुछ सवाल हैंclick
तोड़ते सिर्फ अकड़ है लोगो की,
बुरे को बुरा बोलने में कोई पछतावा नही है।
बहुत से है चाहने वाले हमारे भी,
पर जरूरत के अलावा आया कभी बुलावा नही है।
रिश्तों की अहमियत है हमें भी,
लेकिन डोर बांधने की कोई चाहत नहीं है।
गलत को गलत हि बोलता हूं लेकिन,
इसराह में अकेला हो जाऊंगा इससेे कोई हड़बड़ाहट नहीं है।
अक्सर काली परछाइयों के ही होते है राज़,
फिर भी राज़ खोल दूं ऐसी इमानियत नहीं है।
पढ़िए स्त्री पर कविता क्लिक
पतंग सी हो गई है मेरी ज़िन्दगी,
लेकिन अपनी डोर किसी के हाथ में दूं ऐसी आदत नहीं है।
हीरों का खरीददार भी रहुंगा एक दिन,
लेकिन सिर्फ सपनों में ही ख्वाब बुनने की आदत नहीं है।
सब्र करना मेरे बुरे वक़्त का तमाशा देखने वालों,
सिर्फ हारा हूं अभी, हार मान जाऊ ऐसी फितरत नहीं है।
कविताकार - शुभम तिवारी और सर्यदीप पांडेय
Admin thanks- दोस्तों आशा करता हूं मेरे द्वारा प्रस्तुत कविता आपको बेहद पसंद आई हो। इस कविता में लेखक का कलम से लगाव को आसानी से समझा जा सकता है।
यह भी पढ़ें- दोस्तो हमारी अन्य रचनाएं पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर दबाएं-
Motivational poem in hindi |
Motivational poem in hindi
शीर्षक- "जंग जिंदगी के"
क्यों हुआ ये सब इसपे किसका जोर है,कुछ तो होगा जरूर ,
जिसका इशारा तुम्हारी ओर है।
ये कोई हकीकत नही है बस बेसुरा शोर है,
अगर मजबूत है इरादा तो ढ़ीली क्यों मेहनत की डोर है,
गलतफैमिया है सोच की बातें भी बिना जोर है।
वर्षा ऋतु पर सर्वश्रेष्ठ कविता पढ़ने के लिए दबाएं
ढूंढ़ लो खुद को अभी नही हुई देर है,
क्यों देते हो दुहाई तक़दीर की
जब कि तुम खुद हो मालिक।
हथेली के हर एक लकीर की,
छोड़ो ये राग सुर कोई अच्छा तान लो,
होगा क्यो नही कुछ अगर तुम मन से ठान लो।
आये है सब एक मक़सद से,
पूरा कर के ही जाना है,
कर लेंगे वो सब अपना,
जो मन मे बरसों से ठाना है।
दिख रहा की है कुछ पास नही,
बस ये मुश्किलों का ताना-बाना है,
सपने सच करने की दौड़ में,
हमको तेजी से दौड़ लगाना है।
मेहमान सी है ये जिंदगी,
बस कुछ वर्षों का हि ठिकाना है,
कुछ करने आये है तो ,
कुछ कर के ही यहाँ से जाना है।
यू ही नही मिलता जन्म यहाँ,
पहले से बुना गया अफ़साना है,
बस मेहनत के बलबूते,
अपनी मंजिल को पाना है।
संवाद अपने कलम से click here
सच्चाई का कोई मोल नही,
बुराई से भरा जमाना है,
हमको अपने रास्ते पर,
बस यूं ही चलते जाना है।
रुकना नही है मंजिल तक,
हर अपनों का साथ निभाना है,
दिखती हर गुंजाइश में,
बस सफलता को ही पाना है।😊
By:- Suryadeep pandey
शीर्षक- *आगाह*
मेरे दिल मे किसी अपने के प्रति दिखावा नही है,
जो कुछ कहना है सामने है कोई छलावा नही है।
मिटे छाप अपने संस्कार और संस्कृति की,
ऐसा कोई ढंग या पहनावा नही है।
साफ है तासीर हर एक के लिए,
किसी विशेष का मेरे स्नेह में दावा नही है।
देश की दशा पर कविता- मेरे कुछ सवाल हैंclick
तोड़ते सिर्फ अकड़ है लोगो की,
बुरे को बुरा बोलने में कोई पछतावा नही है।
बहुत से है चाहने वाले हमारे भी,
पर जरूरत के अलावा आया कभी बुलावा नही है।
रिश्तों की अहमियत है हमें भी,
लेकिन डोर बांधने की कोई चाहत नहीं है।
गलत को गलत हि बोलता हूं लेकिन,
इसराह में अकेला हो जाऊंगा इससेे कोई हड़बड़ाहट नहीं है।
अक्सर काली परछाइयों के ही होते है राज़,
फिर भी राज़ खोल दूं ऐसी इमानियत नहीं है।
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पतंग सी हो गई है मेरी ज़िन्दगी,
लेकिन अपनी डोर किसी के हाथ में दूं ऐसी आदत नहीं है।
हीरों का खरीददार भी रहुंगा एक दिन,
लेकिन सिर्फ सपनों में ही ख्वाब बुनने की आदत नहीं है।
सब्र करना मेरे बुरे वक़्त का तमाशा देखने वालों,
सिर्फ हारा हूं अभी, हार मान जाऊ ऐसी फितरत नहीं है।
कविताकार - शुभम तिवारी और सर्यदीप पांडेय
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