दोस्तों मैं एक शाम बैठा अपने कलम के साथ के वक्तव्य को आपके साथ पद्दात्मक तरीके से साझा कर रहा हूं।
हो सकता है यह कृत्य आपको अति सन्योक्ती लगे परन्तु दोस्तों अक्सर अपने खामोशी के पल को मेरे कलम के साथ साझा करना मुझे सुकून देता है।
इस कविता में एक कवि हृदय किस तरह से अपने कलम के साथ जीवंत रुप में रहता है बहुत ही चातुर्यता से प्रकट किया गया है।
मैं क्या लिख दूं, ऐ मेरे कलम
हाथों में मचल कर ना कर यूं सितम।
विरह की वेदना को तो पिघलने दे,
अभी तो सिर्फ टूटा हूं
इन टुकड़ों को थोड़ा और भी तो बिखरने दे ।
वर्षा ऋतु पर सर्वश्रेष्ठ कविता पढ़ने के लिए दबाएं
अगर इतनी ही जल्दबाजी है ,
मेरे जख्मों को समझने की।
तो अभी सिर्फ मैं भीगा हूं इन आंसुओं से,
आजा तू भी बैठ,
जिंदगी के रंगीन पन्नों को भी तो भीगने दे ।
जमाने ने केवल मेरे जिंदगी के
हसीन पल को देखा है,
उन्हें मेरे आंसुओं के सैलाब से भी तो मिलने दे।
पढ़िए स्त्री पर कविता क्लिक
मैंने देखा है लोगों को अक्सर
मेरे जख्मों पर नमक डालते,
कम से कम तू तो मेरे आंसुओं से इन जख्मों को धुलने दे ।
पत्थरों की लकीरों सी हो गई है मेरी जिंदगी
यहां दर्द है की मिटाए नहीं मिटते।
आजा मेरे ऊपर भी एक एहसान कर दे,
मेरे दर्द को शब्दों के धागों में भर दे।
तू भरते आया है कोरे कागज को अक्सर,
जैसे निःस्वार्थ सींचता है आसमां जमीन बंजर,
मेरे बेरंग जीवन में भी तो जां भर दे
देश की दशा पर कविता- मेरे कुछ सवाल हैंclick
ऐ कलम आ बैठ जरा,
तेरे साथ ही चलूंगा यह वादा रहा,
लेकिन इस मनहूस शाम की तरह
मेरे दर्द को भी तो ढलने दे।
Admin thanks- दोस्तों आशा करता हूं मेरे द्वारा प्रस्तुत कविता - "संवाद अपने कलम से" आपको बेहद पसंद आई हो। इस कविता में लेखक का कलम से लगाव को आसानी से समझा जा सकता है।
यह भी पढ़ें- दोस्तो हमारी अन्य रचनाएं पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर दबाएं-
हो सकता है यह कृत्य आपको अति सन्योक्ती लगे परन्तु दोस्तों अक्सर अपने खामोशी के पल को मेरे कलम के साथ साझा करना मुझे सुकून देता है।
इस कविता में एक कवि हृदय किस तरह से अपने कलम के साथ जीवंत रुप में रहता है बहुत ही चातुर्यता से प्रकट किया गया है।
sanvad apne kalam se |
शीर्षक- संवाद अपने कलम से
मैं क्या लिख दूं, ऐ मेरे कलम
हाथों में मचल कर ना कर यूं सितम।
विरह की वेदना को तो पिघलने दे,
अभी तो सिर्फ टूटा हूं
इन टुकड़ों को थोड़ा और भी तो बिखरने दे ।
वर्षा ऋतु पर सर्वश्रेष्ठ कविता पढ़ने के लिए दबाएं
अगर इतनी ही जल्दबाजी है ,
मेरे जख्मों को समझने की।
तो अभी सिर्फ मैं भीगा हूं इन आंसुओं से,
आजा तू भी बैठ,
जिंदगी के रंगीन पन्नों को भी तो भीगने दे ।
जमाने ने केवल मेरे जिंदगी के
हसीन पल को देखा है,
उन्हें मेरे आंसुओं के सैलाब से भी तो मिलने दे।
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मैंने देखा है लोगों को अक्सर
मेरे जख्मों पर नमक डालते,
कम से कम तू तो मेरे आंसुओं से इन जख्मों को धुलने दे ।
पत्थरों की लकीरों सी हो गई है मेरी जिंदगी
यहां दर्द है की मिटाए नहीं मिटते।
आजा मेरे ऊपर भी एक एहसान कर दे,
मेरे दर्द को शब्दों के धागों में भर दे।
तू भरते आया है कोरे कागज को अक्सर,
जैसे निःस्वार्थ सींचता है आसमां जमीन बंजर,
मेरे बेरंग जीवन में भी तो जां भर दे
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ऐ कलम आ बैठ जरा,
तेरे साथ ही चलूंगा यह वादा रहा,
लेकिन इस मनहूस शाम की तरह
मेरे दर्द को भी तो ढलने दे।
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Very nice poem
जवाब देंहटाएंCarry on
Ji thank you 😊
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंKorean hai
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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