व्यावहारिक शिष्टाचार
एक व्यक्ति दूसरे के साथ जो सभ्यता पूर्ण व्यवहार करता है उसे शिष्टाचार कहते हैं। यह व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि अपने रहन-सहन तथा वचनों से दूसरों को कष्ट या असुविधा ना हो। शिष्टाचार दिखावटी नहीं होना चाहिए वह सच्चा होना चाहिए। शिष्टाचार सदाचार का अंग है। प्रत्येक देश एवं समाज के शिष्टाचार के नियम कुछ प्रथक प्रथक होते हैं बचपन में ही इन नियमों को जान लेना चाहिए और इनके पालन का स्वभाव बना लेना चाहिए।शिष्टाचार के दो मुख्य भाग हैं:-
१) एक अपने शरीर वस्त्र चलने फिरने खाने-पीने, उठने बैठने ,आदि से संबंधित।
२) दूसरे व्यक्तियों से व्यवहार बातचीत आज से संबंधित। जैसे ही बच्चा कुछ समझने योग्य होता है उसे इन नियमों के पालन का अभ्यस्त होना चाहिए।
बड़ों के प्रति शिष्टाचार -
१) बड़ों को कभी तुम मत कहो उन्हें आप कहो और अपने लिए हम का प्रयोग मत करो। मैं कहो।
२) जो गुरुजन घर में है, उन्हें सवेरे उठते ही प्रणाम करो ।अपने से बड़े लोग जब पहले मिले, जब उनसे भेंट हो, प्रणाम करना चाहिए।
३) जहां दीपक जलाने या मंदिर में आरती होने पर सायंकाल प्रणाम करने की प्रथा हो वहां उस समय भी प्रणाम करना चाहिए।
४) जब किसी नवीन व्यक्ति से परिचय कराया जाए तब उन्हें प्रणाम करना चाहिए। पान-इलाइची या पुरस्कार जब कोई दे तब उस समय भी उसे प्रणाम करना चाहिए।
५) गुरुजनों को पत्र व्यवहार में भी प्रणाम लिखना चाहिए ।
६) प्रणाम करते समय हाथ में कोई वस्तु हो तो उसे बगल में दबाकर या एक ओर रखकर प्रणाम करना चाहिए।
७) चिल्लाकर या पीछे से प्रणाम नहीं करना चाहिए। सामने जाकर शांति से प्रणाम करना चाहिए। प्रणाम की उत्तम रीति दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाना है। जिस समाज में प्रणाम के समय जो कहने की प्रथा हो उसे शब्द व्यवहार करना चाहिए। महात्माओं के साधु-संतों के चरण छूने की प्राचीन प्रथा है।
८) जब कोई भोजन कर रहा हो, स्नान कर रहा हो, बाल बनवा रहा हो, सौच जाकर हाथ ना धोए हो तो उस समय उसे प्रणाम नहीं करना चाहिए। उसके इन कार्यों से निवृत्त होने पर प्रणाम करना चाहिए।
बड़ों के प्रति शिष्टाचार
२)लोगों को बुलाने, पत्र लिखने या उनकी चर्चा करने में उनके नाम के आगे श्री और जी अवश्य लगाओ। इसके अतिरिक्त पंडित, सेठ, बाबू, लाला, आदि उपाधि हो तो उसे भी लगाओ।
३) अपने से बड़ों की ओर पीठ करके मत बैठो। उनके सामने पैर फैला कर भी मत बैठो। उनकी ओर पैर करके मत सो।
४) मार्ग में जब गुरुजनों के साथ चलना हो तो उनके आगे या बराबर मत चलो। उनके पीछे चलो। उनके पास कुछ सामान हो तो आग्रह करके उसे स्वयं ले लो। कहीं दरवाजे में से जाना हो तो पहले बड़ों को जाने दो। द्वार बंद हो तो आगे बढ़कर खोल दो और आवश्यकता हो तो भीतर प्रकाश कर दो। यदि द्वार पर पर्दा हो तो उसे तब तक उठाए रहो जब तक वह अंदर नहीं चले जाएं।
५) सवारी पर बैठते समय बड़ों को पहले बैठने देना चाहिए ।कहीं भी बैठे हो तो बड़ों के आने पर खड़े हो जाओ और उनके बैठ जाने पर बैठे। उनसे ऊंचे आसन पर तो बैठो ही मत। बराबर में भी मत बैठो। नीचे बैठने की जगह हो तो नीचे बैठो। बड़ों से बात करनी हो तो नीचे उतर कर बात करो। वह खड़े हो तो उनसे बैठे-बैठे बात मत करो। खड़े होकर बात करो। चारपाई आदि पर बड़ों को तथा अतिथियों को सिरहने की ओर बैठाना चाहिए।
मोटर घोड़ा-गाड़ी या सवारियों में बराबर बैठना ही हो तो बड़ों की बाई ओर बैठना चाहिए।
६) जब कोई आदरणीय व्यक्ति अपने यहां आए तब कुछ दूर आगे बढ़ कर उनका स्वागत करना चाहिए। और जब वे जाने लगे तब सवारी तक या द्वार तक उन्हें पहुंचाना चाहिए। छाव या पानी तक पहुंचाने की पुरानी परंपरा है।
७) गुरु, स्वामी आदि के आसन पर उनकी अनुपस्थिति में भी नहीं बैठना चाहिए।
८) यदि मार्ग में चलते समय चतरी एक ही हो तो उसे अपने हाथ में ले लो और इस प्रकार उन्हें लगाए रहो कि उनकी तालियां उन्हें ना लगे।
९०) कोई सम्मानित व्यक्ति अपने यहां आए तो आइए नहीं कहना चाहिए उनसे पधारिए कहना चाहिए।
छोटों के प्रति शिष्टाचार
१) बच्चों को, नौकरों को अथवा किसी को भी तू मत कहो तुम या आप कह कर बोलो।२) जब कोई तुम्हें प्रणाम करें तब उसके प्रणाम का उत्तर प्रणाम करके, आशीर्वाद देकर या जैसे उचित हो अवश्य दो।
३) बच्चों को चूमों मत यह स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। स्नेह प्रकट करने की भारत की पुरानी रीत यह मस्तक सूंघ लेना। यही उत्तम रीति है।
४) नौकरों को भी भोजन तथा विश्राम के लिए उचित समय दो बीमार आदमी उनकी सुविधा का ध्यान रखो नौकर भोजन, स्नान आदि में लगा हो तो पुकारो मत। किसी को भी कभी नीच मत समझो।
५) तुम्हारे जाने से तुमसे जो छोटे हैं उन्हें असुविधा ना हो यह ध्यान रखना चाहिए। छोटों के आग्रह करने पर भी उनसे अपनी सेवा का काम कम से कम लेना चाहिए।
स्त्रियों के प्रति शिष्टाचार
१) अपने से बड़ी स्त्रियों को माता, बराबर वाली को बहन, तथा छोटी को कन्या समझो।२) बिना जान पहचान की स्त्री से कभी बात करनी ही पड़े तो दृष्टि नीचे करके बात करनी चाहिए। स्त्रियों को घूरना, उनसे हंसी करना, उनके प्रति इसारे करना या उनको छूना असभ्यता है।
३) घर के किसी भाग में स्त्री रहती हो वहां बिना सूचना दिए नहीं जाना चाहिए। जिस मार्ग से स्त्रियां ही जाती हो उधर से नहीं जाना चाहिए। जहां स्त्रियां स्नान करती हों वहां नहीं जाना चाहिए। जिस कमरे में कोई स्त्री अपरिचित हो, अकेली हो, पर्दा करने वाली हो, कपड़े पहन रही हो, भोजन कर रही हो, उसमें भी नहीं जाना चाहिए।
४) गाड़ी में स्त्रियों को बैठाकर तब बैठना चाहिए। कहीं सवारी में या अन्यत्र स्थान की कमी हो और कोई स्त्रियां आ जाएं तो उठ कर उसके बैठने के लिए स्थान खाली कर देना चाहिए।
५) स्त्रियों के सामने अपर्याप्त वस्त्रों में स्नान नही करना चाहिए और ना उनसे स्त्री पुरुष के चर्चा करनी चाहिए यही बातें स्त्रियों के लिए भी हैं। विशेषता उन्हें खिड़कियों या दरवाजे में खड़े होकर झाकते नहीं रहना चाहिए और ना गहने पहनकर या इस प्रकार सज-धज कर निकलना चाहिए कि लोगों का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हो।
क्योंकी नारी का आभूषण शील है।
सर्वसाधारण के प्रति शिष्टाचार
१) यदि किसी के अंग ठीक नहीं, कोई लंगड़ा या कुरूप है अथवा किसी में तुतलाने आदि का कोई स्वभाव है, तो उसे चिढ़ाओ मत, उसकी नकल नहीं करनी चाहिए। कोई स्वयं गिर पड़े या उसकी कोई वस्तु गिर जाए किसी से कोई भूल हो जाए तो हंस कर उसे दुखी मत करो। यदि कोई दूसरे प्रांत का तुम्हारी रहन-सहन में बोलने के ढंग में भूल करता है तो उसकी हंसी मत उड़ाओ।२) कोई रास्ता पूछे तो उसे समझा कर बताओ और संभव हो तो कुछ दूर तक जाकर मार्ग दिखाओ। कोई चिट्ठी पढ़ने के लिए आग्रह करे तो रुक कर पढ़ दो। किसी का भार उससे ना उठता हो तो उसके बिना कहे ही उठवा दो। कोई गिर पड़े तो उसे सहायता देकर उठा दो। जिसकी जैसी भी सहायता कर सकते हो उसे अवश्य करो। किसी की उपेक्षा मत करो।
३) अंधे को अंधा कहने के बदले सूरदास कहना चाहिए। किसी में कोई अंग दोष हो तो उसे चिढ़ाना नहीं चाहिए। उसे इस प्रकार बुलाना या पुकारना चाहिए कि उसको बुरा ना लगे।
४) किसी भी देश या जाति के झंडे, राष्ट्रीय गान, धर्म ग्रंथ अथवा सम्मानीय महापुरुषों का अपमान कभी मत करो। उनके प्रति आदर प्रकट करो। किसी धर्म या संप्रदाय पर अपेक्षा मत करो।
५) सोए हुए व्यक्ति को जगाना हो तो बहुत धीरे से जगाना चाहिए।
६) किसी से झगड़ा मत करो। कोई बहस में अपने मत पर हठ करें और उसकी बातें तुम्हें ठीक ना लगे तब भी उसका खंडन करने का हठ मत करो।
७) मित्रों पड़ोसियों परिचितों को भाई चाचा आदि उचित संबोधन से पुकारो।
८) दो व्यक्ति झगड़ रहे हो तो उनके झगड़े को बढ़ाने का प्रयत्न मत करो। दो व्यक्ति परस्पर बातें कर रहे हो तो वहां मत जाओ और ना चुप कर उनकी बातें सुनने का प्रयत्न करो। दो आदमी बैठे या खड़े बातें करते हो तो उनके बीच में मत जाओ।
९) आपने हमें पहचाना कैसे? प्रश्न करके दूसरों की परीक्षा मत करो। आवश्यकता ना हो तो किसी का नाम-गांव मत पूछो और कोई कहीं जा रहा हो तो कहां जाते हो? यह भी मत पूछो।
१०) किसी का पत्र मत पढ़ो और ना किसी की कोई गुप्त बात जानने का प्रयत्न करो।
११) किसी की निंदा या चुगली मत करो। दूसरों का कोई दोष तुम्हें ज्ञात हो भी जाए तो उसे किसी से कहो मत। किसी ने तुमसे दूसरे की निंदा की हो तो उसे मत फैलाओ।
१२) बिना आवश्यकता के किसी की जाति, आमदनी, वेतन मत पूछो।
१३) कोई अपना परिचित बीमार हो जाए तो उसके पास जाना चाहिए। वहां उतनी ही देर ठहरना चाहिए जिसमें उसे या उसके आसपास के लोगों को कष्ट ना हो। उसके रोग की गंभीरता की चर्चा वहां नहीं करनी चाहिए। ना ही बिना पूछे औषध बताएं लगना चाहिए।
१५) अपने यहां कोई मृत्यु या दुर्घटना हो जाए तो बहुत चिल्ला कर शोक नहीं प्रकट करना चाहिए। किसी परिचित या पड़ोसी के यहां मृत्यु-दुर्घटना हो जाए तो वहां उसे जाकर आश्वासन देना चाहिए।
१६) किसी के घर जाओ तो उसकी वस्तुओं को मत छुओ। वहां प्रतीक्षा करनी पड़े तो धैर्य रखो। कोई तुम्हारे यहां आए और उसे प्रतीक्षा करनी पड़े तो समय काटने के लिए कुछ पुस्तक,समाचार पत्र दे दो।
१७) बातचीत में कम बोलो। किसी से अपनी ही बात मत कहते रहो। दूसरों की बात धैर्य पूर्वक सुनो। कोई तुम्हारे पास आकर कुछ अधिक देर भी बैठे तो ऐसी भाव मत प्रकट करो कि तुम सो गए हो।
१८) किसी से मिलो तो उसका कम से कम समय लो। केवल आवश्यक बातें ही करो वहां से आना हो तो उसको नम्रता पूर्वक सूचित कर दो। वह अनुरोध करें तो बहुत असुविधा ना हो तो कुछ देर वहां रुको।
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