gayatri mantra in hindi- गायत्री मंत्र

गायत्री मंत्र:- 

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ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

अर्थ पृथ्वी अंतरिक्ष और स्वर्ग पर्यंत जो प्रकाश स्वरूप सूर्य समस्त सुर्खियों में प्रसिद्ध है वह प्रकाशमान विश्वस्त परमात्मा हमारी बुद्धि को सत्कार्य में प्रेरित करें

यह मंत्र सर्वप्रथम ऋग्वेद में प्रकट हुआ। इसके रचनाकार ऋषि विश्वामित्र और देवता सविता हैं। वैसे तो यह मंत्र ऋषि विश्वामित्र के इस सूक्त के 18 मंत्रों में केवल एक है, परन्तु अर्थ की दृष्टि से इसकी महिमा का अनुभव आरंभ में ही ऋषि मुनियों ने कर लिया था।

 संपूर्ण ऋग्वेद के 10 सहस्र मंत्रों में इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे ज़ादा की गई। इस मंत्र में 24 अक्षर हैं। उनमें आठ - आठ अक्षरों के तीन चरण हैं। किंतु ब्राह्मण ग्रंथों में और कालांतर के समस्त साहित्य में इन अक्षरों से पूर्व तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप इस प्रकार स्थिर हुआ है -

(1) ॐ
(2) भूर्भव: स्व:
(3) तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है। एवं जप में इसी मंत्र का विधान किया है।


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गायत्री मंत्र जाप
:- 

समस्त वैदिक मंत्रों में गायत्री मंत्र को विशेष स्थान प्राप्त है इसलिए इसे गायत्री महामंत्र कहते हैं। 24 अक्षर के इस मंत्र में सारी सृष्टि समाई हुई है। यह मंत्र औषधि रूप है अर्थात जो मनुष्य इस महामंत्र का प्रतिदिन प्रायः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर विधिपूर्वक जाप करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं ।इस दिव्य मंत्र के जाप से सुख संपत्ति का आगमन होता है ।तथा परलोक में भगवती गायत्री की कृपा से उस मनुष्य को दिव्य स्थान की प्राप्ति होती है अर्थात मोक्ष की गति मिलती है वेदों और पुराणों ने गायत्री को वेदमाता कहा है। ब्रम्ह यज्ञ में 10 बार गायत्री मंत्र का जाप कर लेने से ही वेद अधिकार प्राप्त हो जाता है।


गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर होते हैं, यह 24 अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं।इसी कारण ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला विशेष मंत्र बताया है।

गायत्री मंत्र जप के लाभ:-

गायत्री मंत्र का नियमित रुप से सात से ग्यारह बार शायम - प्रातः जप करने से व्यक्ति के आस-पास नकारात्मक शक्तियाँ ठहर नहीं पातीं हैं।

गायत्री मंत्र जाप के वैज्ञानिक प्रभाव -

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस छोटे से गायत्री मंत्र को उच्चारण करते समय प्रति सेकंड ११०००० विभिन्न प्रकार की तरंगे उत्पन्न होती हैं जिससे दिमाग में चल रही सभी तनावपूर्ण बातें विस्तार नहीं कर पाती और मन को शांति का अनुभव होता है। इस मंत्र के उच्चारण करने का सही समय सूर्य उदय से 90 मिनट पहले का समय है।

जप से कई प्रकार के लाभ होते हैं:-

१) व्यक्ति का तेज बढ़ता है और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है।

२) बौद्धिक क्षमता और मेधाशक्ति यानी स्मरणशक्ति बढ़ती है।

 अवसाद से ग्रसित मन शांति का अनुभव करता है।

४) दिमाग में न्यूरो सेल की वृद्धि होती है जो आपके याद करने की शक्ति तेज प्रदान करती है।

५) कुछ शोधों से पता चला है कि नियमित जाप करने से अल्जाइमर जैसे बीमारी में चमत्कारिक आराम मिलता है।
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गायत्री मंत्र 
व्याख्या:-

गायत्री तत्व क्या है? और क्यों इस मंत्र की इतनी महिमा है। इस प्रश्न का समाधान आवश्यक है। आर्य मान्यता के अनुसार गायत्री एक ओर विराट् विश्व और दूसरी ओर मनुष्यता, 
एक ओर देव-तत्व और दूसरी ओर भूत-तत्त्व,
एक ओर प्राण और दूसरी ओर मन,
एक ओर कर्म और दूसरी ओर ज्ञान के पारस्परिक संबंधों की पूरी व्याख्या विस्तृत रूप से कर देती हैं।

 इस मंत्र के देवता सविता हैं, सविता सूर्य की संज्ञा है, सूर्य के नाना रूप हैं, उनमें सविता वह रूप है जो समस्त देवों को प्रेरित करता है। जाग्रत् में सविता रूपी मन ही मानव की महती शक्ति होती है। जैसे सविता देव है, वैसे मन भी देव है। (देवं मन: ऋग्वेद) मन ही प्राण का प्रेरक है। मन और प्राण के इस संबंध की व्याख्या गायत्री मंत्र को इष्ट है।

देव सविता मन प्राणों के रूप में सब कर्मों के अधिष्ठाता है, यह सत्य प्रत्यक्ष सिद्ध है। इसे ही गायत्री के तीसरे चरण में कहा गया है। ब्राह्मण ग्रंथों की व्याख्या है - "कर्माणि धिय:", अर्थात जिसे हम धी या बुद्धि तत्त्व कहते हैं वह केवल मन के द्वारा होने वाले विचार या कल्पना सविता नहीं किंतु उन विचारों का कर्म रूप में मूर्त होना है।

 यही उसकी चरितार्थता है। किंतु मन की इस कर्म क्षमशक्ति के लिए मन का सशक्त या बलवान होना आवश्यक है। मन की शक्तियों का तो पार नहीं है। उनमें से जितना अंश मनुष्य अपने लिए सक्षम बना पाता है, वहीं उसके लिए उस तेज का वरणीय विशेष अंश है। अत एव सविता के भर्ग की प्रार्थना में विशेष ध्वनि यह भी है कि सविता या मन का जो दिव्य अंश है वह पार्थिव या भूतों के धरातल पर अवतरित होकर पार्थिव शरीर में प्रकाशित हो।


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 इस गायत्री मंत्र में अन्य किसी प्रकार की कामना नहीं पाई गयी। यहाँ एक मात्र पवित्र अभिलाषा यह है कि मानव को परमात्मा की ओर से मन के रूप में जो दिव्य शक्ति प्राप्त हुई है उसके द्वारा वह उसी सविता का ध्यान करे और कर्मों के द्वारा उसे इस जीवन में सार्थकता प्रदान करे।

गायत्री मंत्र के पूर्व में जो तीन व्याहृतियाँ हैं, वे भी सहेतुक हैं।

 भू- पृथ्वीलोक, अग्नि, पार्थिव जगत् और जाग्रत् अवस्था का सूचक है। 

भुव:- अंतरिक्ष लोक, यजुर्वेद, वायु देवता, प्राणात्मक जगत् और स्वप्नावस्था का सूचक है। 

स्व:- सामवेद, आदित्यदेवता, मनोमय जगत् और सुषुप्ति अवस्था का सूचक है। 

इस त्रिक के अन्य कई प्रतीक ब्राह्मण, उपनिषद् और पुराणों में कहे गए हैं, परन्तु यदि त्रिक के विस्तार में व्याप्त निखिल विश्व को वाक् के अक्षरों के संक्षिप्त संकेत में समझना चाहें तो उसके लिए ही यह "" संक्षिप्त संकेत गायत्री के आरंभ में रखा गया है। 

, उ एवं म इन तीनों मात्राओं से "ॐ" का स्वरूप बना है। 
- अग्नि, 
- वायु,
- आदित्य का प्रतीक है।

 यह विश्व प्रजापति की वाक् है। वाक् का अनंत कोटि विस्तार है किंतु यदि उसका एक संक्षिप्त नमूना लेकर संपूर्ण विश्व का स्वरूप बताना चाहें तो अ, उ, म या ॐ कहने से उस त्रिक का परिचय प्राप्त होगा।

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