वर्तमान परिवेश पर कविता:-
आज के इस वर्तमान परिवेश पर कविता - स्वार्थ भरे जीवन में लोगो के बदलते चेहरे को बयां करती है। इस छोटी सी कविता से आपको इसका सार बखूबी समझ आएगा।
शीर्षक - रिश्तों की होड़
रहबर बने हैं रिश्तों को निभाने की होड़ में,
भटक से गये है कही इन अपनो की दौड़ में,
मुखबिर भी है अपनी राह के मुसाफ़िर भी है,
अपनी नजर में पहले, लोगो की नजर में आख़िर भी है,
तकाजा लगा है कि मिलेगा सब कुछ,
हम खोज में भी है उस पल के ख़ातिर भी है,
मेहमान से है जिंदगी में कही न कही,
दो पल के सुकून को,हम बेचैन भी है आतुर भी है,
तय कर रहे है हर फासला सफाई से,
अभी तक सहा है सब कुछ सिर्फ अच्छाई से,
भले बन कर उम्मीदों पर खरे भी है,
कुछ अपनो से हम डरे भी है।
चुप बैठे है अपनेपन के एहसास मे,
मौन कर रखे है सब इंसाफ की आस में,
suryadeep pandey
कठिन शब्दार्थ :-
- रहबर - राह दिखाने वाला, मार्गदर्शन
- होड़ - शर्त,बाजी, प्रतिस्पर्द्ध
- मुखबिर - जासूस
- मुसाफिर - राहगीर
- तकाजा - मांगना, आवश्कता, आदेश, इच्छा
- खातिर - वास्ते, लिए
- आतुर - लालायित
- फासला - दूरी
- सुकून - आराम
- खरे - शतप्रतिशत
- आस - आशा, अनुमान
- भले - नेक
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अन्तिम परिवर्तन - 22 सितम्बर 2020
Very good
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