बिछड़ने पर कविता
इस कविता के माध्यम से एक प्रेमी अपने प्रेमिका के बिछड़ने के भावों को व्यक्त कर रहा है। जन्हा ये कह पाना मुश्किल है को ये बिछड़न सही है या गलत।
यहां तक की उसे अभी भी एक दिन अपने प्रेमिका के वापस आने की आश चाह बनी हुई है ।
क्योंकि अभी भी उसके जहन में सही क्या गलत क्या की लहरे जी को तोड़ मरोड़ रही है।
शीर्षक - उजाले से अंधेरे की ओर
एक दिन तो बुझ जाना ही था,
इस जगमगाते दिये 🪔 को,,,
फिर भी समझना ये बाकी है
दिया दोषी या बाती है?
मानो कह उठा ये धुआं है...
बिखर चुका ये आसतां है।
बे-वजह दोष देते रह गए ,,,
इन मचलती हवा को।
जो सह न सकी उन झोंको को,,,
जिन झोंको से कभी इठलाती थी।
वाजिब वजह तो कुछ और ही थी,,,
न दिया दोषी ना बाती थी।
लग रहा ये अंधेरा भी सच्चा है,,,
रोशनी का बुझ जाना भी अच्छा है।
कभी तो ढूंढोगे उन उजालों को,,,
जब ये अक्ताई आंखे कोई न देखेगा
इन छाए अंधेरो के समंदर में।
कविताकार - शुभम तिवारी SORK
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