सेक्स और इंसान -
Sex and humen |
आज इंसान कामुकता को दबाने के कारण ही बंध गया और जकड़ गया। और यही वजह है पशुओं की तो सेक्स की कोई अवधि होती है कोई निश्चित समय सीमा होती है वर्ष में आदमी की कोई अवधि न रही कोई पीरियड न रहा।
हर वक्त सेक्स क्यों?
इंसान चौबीस घंटे बारह महीने कामुकता से भरा है सारे जानवरों में कोई जानवर ऐसा नहीं है कि जो बारह महीने और चौबीस घंटे कामुकता से भरा हुआ हो। उसका वक्त है उसकी ऋतु है वह आती है और चली जाती है और फिर उसका स्मरण भी खो जाता है।
आदमी को क्या हो गया?
आदमी ने दबाया जिस सेक्स को दबाया वह फैल कर उसके चौबीस घंटे और बारह महीने के जीवन पर फैल गई है। आदमी सोते जागते बस एक ही खयाल में खोया है आज की
बाहर नैतिकता और अंदर कामुकता क्यों?
कभी आपने इस पर विचार किया कि कोई पशु हर स्थिति में हर समय कामुक नहीं होता। लेकिन आदमी हर स्थिति में हर समय कामुक है।
वह मंदिर जैसे पवित्र जगह में भी कामुकता से दूर नही रह पाता|
वह ग्रंथालयो में भी चोरी चिपके कही एक कोने में अपनी खयाली दुनिया में सेक्स ढूंढ रहा होता है।
वह चिकित्सालय में भी बीमार इंसानों के बीच भी उन संभावनाओं को तलाशता है।
वह विवाह घरों में जहा एक जोड़ा जीवन के पवित्र बंधन में बंध रहा होता है उसी शुभ काम के बीच कई ऐसे जोड़े अपनी कामुकता के आगोश में मस्त होते है। जैसे कामुकता उबल रही है ,जैसे कामुकता ही सब कुछ है।
आज ऐसा प्रतीत होता है की इंसान कमाता ही है एक अच्छा सेक्स पार्टनर को पाने की चाहत में या फिर वह जीवन में ऊंचाइयों में जाता ही इसलिए है की उसकी वो कामुकता की भूख मिटाने के लिए संसाधन जुटा सके।
सेक्स की इतनी इच्छा क्यों?
यह कैसे हो गया?
यह दुर्घटना कैसे संभव हुई है?
पृथ्वी पर सिर्फ मनुष्य के साथ हुई है
और किसी जानवर के साथ नहीं क्यों?
मुझे लगता है इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण ही यह है की मनुष्य ने इस पर हमेशा से पर्दा डालना ही जाना है।
उसने कभी इन चीजों पर प्राकृत तरीके से जानने और अपनी चेतना विकसित करने की सोचा ही नहीं।
एक ही कारण है सिर्फ मनुष्य ने दबाने की कोशिश की है। और जिसे दबाया, वह जहर की तरह सब तरफ फैल गया और दबाने के लिए हमें क्या करना पड़ा?
दबाने के लिए हमें निंदा करनी पड़ी दबाने के लिए हमें गाली देनी पड़ी दबाने के लिए हमें अपमानजनक भावनाएं पैदा करनी पड़ीं।
∆ हमें कहना पड़ा कि सेक्स पाप है।
∆ हमे मानना बड़ा सेक्स बर्बादी का द्वार है।
∆ हमें कहना पड़ा कि सेक्स नरक है।
∆ हमें कहना पड़ा कि जो सेक्स में है
∆ वह गर्हित है निंदित है।
और जिन लोगो ने इन चीजों को माना वही असल में पिछड़े रह गए। हमें ये सारी गालियां खोजनी पड़ीं तभी हम दबाने में सफल हो सके।
और हमें खयाल भी नहीं कि इन निंदाओं और गालियों के कारण हमारा सारा जीवन जहर सा हो गया है।
नीत्शे का वचन:-
"जो बहुत अर्थपूर्ण है, उसने कहा है कि धर्मों ने जहर खिला कर सेक्स को मार डालने की कोशिश की थी।
सेक्स मरा तो नहीं सिर्फ जहरीला होकर जिंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नहीं। लेकिन और गड़बड़ हो गई बात। वह जहरीला भी हो गया और जिंदा है।"
यह जो सेक्सुअलिटी है यह जहरीला सेक्स है। सेक्स तो पशुओं में भी है काम तो पशुओं में भी है क्योंकि काम जीवन की ऊर्जा है लेकिन सेक्सुअलिटी कामुकता सिर्फ मनुष्य में है।
कामुकता पशुओं में नहीं है-
पशुओं की आंखों में देखें वहां कामुकता दिखाई नहीं पड़ेगी। आदमी की आंखों में झांकें वहां एक कामुकता का रस झलकता हुआ दिखाई पड़ेगा।
इसलिए पशु आज भी एक तरह से सुंदर है। लेकिन दमन करने वाले पागलों की कोई सीमा नहीं है कि वे कहां तक बढ़ जाएंगे।
पशुओं को देखा जाए तो हमसे एक कदम आगे है इस कामुकता से परे और सेक्स को सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाए रखने का हथियार मात्र समझा है और वो इस पर सफल हो पाए।
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