Poem on coronavirus in hindi | महामारी पर कविता

Poem on coronavirus in hindi 

Poem on coronavirus in hindi,  mahamari par kavita
Poem on coronavirus

इस विश्व युध्द रूपी संकट के निदान के अतिरिक्त बाकी सब खोजा जा चुका है,उच्च पर कोई असर नही सब निम्न के हिस्से पड़ा हुआ है, आये दिन कही से मजदूरों की बेबसी सामने आ रही, देखा जाए तो बिकट परिस्थिति बस ऐसी है की अमीर को तो सिर्फ कोरोना से मरने का डर है जबकि एक मध्यम वर्ग को कोरोना से जादा भूख से मरने का डर होता है| इस माहौल को देखते हुए कुछ शब्दों को के माध्यम से उनके पीड़ा का कविता के माध्यम से प्रस्तुत करने जा रहा हूँ-

महामारी और सामाजिक विषमता

हमारा ही मत पा अभिमान में हो कर,
 एक नेता ज्ञान बताता है|

 जब विपत्ति आये सामने ,
तो इधर उधर छिप जाता है|

बहुत कठिन है पथ उनका ,
जो चलते नित सुबह शाम है|

उनको क्या फर्क पड़ेगा ,
जिनका सिर्फ बक़वास करना काम है|

 इस महामारी के काले बादल में,
 इस कठिन विपदा के दलदल में|

 एक मजदूर ही तपति धूप में चलता है , 
 कब तक चुप रह पहुँगा|

ऐसे विकट समागम का ,
ये दर्द अब नही सह पाऊंगा|

भूल गया मैं अपनी पीड़ा ,
जब बिलखते देखे छोटे-छोटे नौनिहालों को|

आग उठी मन विकल सा हो गया,
 उस विरल दृश्य में चलते देख मजदूर के छालों को|

 जो घर से बाहर निकल न सके,
 वो भी एक मजदूर की दशा बताते है|

 इन महामारी के प्रकोपो में गरीब ही मारे जाते है,
 तपति गर्मी और शोलो में |

ये गर्म हवा के हिलोरों में,
आम जनता की कटती-मरती है|

बाकी खास जनता तो सिर्फ अपने हक की चिंता करती है,
नेताओ का क्या कहना चंद बातें|

और गरीबी पर राजनीति की तैयारी है, 
ये संकट तो केवल लाचारो पर भारी है,|

ये दुःखद घड़ी है तुम क्या जानो,
 जो चलते हो बड़ी मोटर कारो में|

उन्नति की कोई कमी रही आयेगी,
जब तक मति में अपभ्रंश पड़ा रहेगा|

जो सबको भोजन दिलवाता है,
वो किसान हाथ फैलाये खड़ा रहेगा|

  चारो ओर विवशता छाई,
   भटका गरीब दर दर ठोकर खाई|

   ये नियति तुझको दया न आई, 
   क्यों लिख दी ऐसी विपत्ति दुखदाई|

   अनुबंध लिए है महायुद्ध पर,
   अस्त्र-शस्त्र नही पास हमारे|

   बातें है हर दम हर कदम यहाँ,
   कोई गिरे तो उसको कौन संभाले|

सारांश:- इस कविता "poem on coronavirus" के माध्यम से एक मध्यमवर्गीय और गरीब तबके के लोगो का संकटकालीन दशा को दिखाने का प्रयास किया गया है जो महामारी जैसे भयावह समय में भी पेट की चिंता में पहले ही मर जाता है| समाज के इस विसमता को सहज़ रूप से समझाया गया है|

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